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Badi Khabar

बाबा साहेब के परपोते राजरत्न अंबेडकर का बड़ा बयान, कहा- मंदिरों के नीचे बौद्ध मठों के होने की लगाएंगे याचिका

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नई दिल्लीः अजमेर दरगाह विवाद पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के परपोते राजरत्न अंबेडकर ने कहा कि निचली अदालत द्वारा उपासना स्थल अधिनियम के उल्लंघन से संबंधित याचिका स्वीकार करना और नोटिस जारी करना संविधान का अपमान और उसे कमजोर करने की कोशिश है। इस साल नवंबर में, अजमेर की एक निचली अदालत ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को नोटिस जारी कर एक याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें दावा किया गया था कि दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। इस मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।


बौद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और बाबा साहेब के परपोते राजरत्न अंबेडकर ने अजमेर में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि "अगर ये जारी रहता है, तो हम मंदिरों के नीचे बौद्ध विरासत स्थलों को उजागर करने के लिए याचिका दायर करेंगे।" उन्होंने ये भी कि कहा पूजा स्थल अधिनियम 1991 के बावजूद, निचली अदालत द्वारा पूजा स्थलों की जांच करने की मांग वाली याचिका को स्वीकार करना और उस पर नोटिस जारी करना संविधान का अपमान है। न्यायपालिका के माध्यम से संविधान को हटाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर ऐसी जांच की अनुमति दी जाती है, तो मंदिरों के नीचे बौद्ध मठों के होने को लेकर याचिका दायर की जाएगी।


मंदिर के 12 फीट नीचे बौद्ध अवशेष

राजरत्न अंबेडकर ने पुरातत्व विशेषज्ञों के हवाले से दावा किया कि गुजरात में सोमनाथ मंदिर के 12 फीट नीचे बौद्ध अवशेष हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसडीपीआई की राष्ट्रीय महासचिव यास्मीन फारूकी ने अजमेर कोर्ट में दायर याचिका को संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को सीधी चुनौती बताया। उन्होंने कहा, "यह याचिका डॉ. अंबेडकर के संविधान के लिए एक लिटमस टेस्ट है। इसके मुख्य संरक्षक के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। ख्वाजा साहब के लाखों अनुयायी उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं।"


उन्होंने ये भी कहा, "यह प्रधानमंत्री और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए एक परीक्षा की घड़ी है।" फारूकी ने बताया कि सालाना उर्स के दौरान अजमेर दरगाह पर चादर भेजने की प्रधानमंत्री मोदी की परंपरा धर्मनिरपेक्ष और समावेशी मूल्यों को बनाए रखने का एक और अवसर प्रदान करती है।

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