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जम्मू-कश्मीर के गांधी के नाम से मशहूर शेर-ए-डुग्गर पंडित प्रेमनाथ डोगरा की अनसुनी कहानी

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पटनाः स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रणेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा को जम्मू-कश्मीर के गांधी के रूप में याद किया जाता है। भारत के संविधान में निहित नागरिक और मौलिक अधिकारों को जम्मू-कश्मीर में लागू करवाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया। भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष रहे पंडित प्रेमनाथ डोगरा का जम्मू के लोग बड़े श्रद्धा से स्मरण करते हैं। उनका मानना है कि पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने ही जम्मू को संरक्षण प्रदान किया, इसलिए उन्हें शेर-ए-डुग्गर भी कहते हैं। 


पंडित प्रेमनाथ डोगरा का जन्म 24 अक्टूबर 1884 को जम्मू-पठानकोट मार्ग से उत्तर में बसे स्माइलपुर गांव में हुआ था। पढ़ाई में कुशाग्र होने के साथ ही वो बेहतरीन एथलीट और फुटबॉल खिलाड़ी थे। पढ़ाई खत्म करने के बाद वो तहसीलदार के पद पर नियुक्त हुए और फिर डिप्टी कमिश्नर बना दिए गए। 1932 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपना ध्यान समाज सेवा की ओर लगाया। वे ब्राह्मण मंडल और सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष बन गए। उन्होंने एक महत्वपूर्ण कानून को पास कराने में योगदान दिया, जिसके अनुसार गैर-कश्मीरी न तो कश्मीर में सरकारी नौकरी पा सकता है और न वहां कोई संपत्ति खरीद सकता है। 


1947 से 1963 तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 लगाने और नेहरू व शेख अब्दुल्ला की कश्मीर नीतियों के विरोध में जो भी आंदोलन चला उसकी कमान प्रजा परिषद पार्टी के हाथ में थी। 14 नवंबर 1952 को पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सत्याग्रह की शुरुआत की। तत्कालीन शेख अब्दुल्ला की सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए संगठन के नेताओं को जेल में डाल दिया लेकिन अब्दुल्ला सरकार की दमनकारी नीति के आगे हर बार जीत राष्ट्रवाद की हुई और आखिरकार जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को पूरी तरह से लागू करना पड़ा।


जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष  डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आकस्मिक निधन के बाद 1955-1956 में पंडित प्रेमनाथ डोगरा को जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया। 1957 से लेकर 1972 तक वो 3 बार राज्य विधानसभा के सदस्य रहे। उन्होंने अपनी कोठी का एक बड़ा हिस्सा संगठन को अर्पित कर दिया। यहां आज भी प्रदेश भाजपा का मुख्य कार्यालय बना है। पंडित जी की कोठी हर समय किसी भी मदद के लिए खुली जगह थी। मानवता, प्रेम और सहानुभूति के प्रतीक बन चुके प्रेमनाथ डोगरा ने वर्तमान पीढ़ी को सिखाया कि व्यक्तिगत हित को त्यागते हुए परोपकार का अभ्यास कैसे किया जाए।


उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के दलित,गरीब और सर्वहारा वर्ग की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। 20 मार्च 1972 को पंडित प्रेमनाथ डोगरा  का निधन हो गया। पंडित प्रेमनाथ डोगरा आज हमारे बीच भले ही ना हों, लेकिन राष्ट्रहित के लिए सब कुछ न्योछावर करने की जो परंपरा वो छोड़ गए, उसे सच्चे देशभक्त आज तक निभा रहे हैं।  



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