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वल्लभ भाई पटेल को क्यों कहते हैं सरदार, किसने दी लौह पुरुष की उपाधि

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नई दिल्लीः अखंड भारत के सूत्रधार और राष्ट्रीय एकीकरण के शिल्पकार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय एकता के प्रतीक हैं। जब भारत आजाद हुआ था तब देश 550 से ज्यादा रियासतों में बंटा था। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बुद्धिमत्ता, राजनैतिक दूरदर्शिता और रणनीति से बिना किसी युद्ध के इन सभी रियासतों का एकीकरण कराया। इसके साथ ही उन्होंने सोमनाथ और द्वारिकाधीश मंदिरों का जीर्णोद्धार करवा कर देश की सनातनी परंपरा को भी गौरवांवित किया। 


बारदोली आंदोलन से बने सरदार 

वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। उन्होंने लंदन जाकर 1910 में बैरिस्टर की पढ़ाई की और 1913 में वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। 1917 में महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। वल्लभ भाई पटेल जी ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ 1918 के खेड़ा सत्याग्रह और 1928 बारदोली सत्याग्रह में किसानों का सफल नेतृत्त्व किया। इस आंदोलन की सफलता के बाद बारदोली की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी। बारदोली में सरदार की उपलब्धि ने उन्हें गांधीजी के बाद दूसरे नंबर का अखिल भारतीय स्तर का नेता बना दिया।


स्वतंत्रता के लिए कई बार जाना पड़ा जेल

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल को कई बार जेल जाना पड़ा। ब्रिटिश हुकूमत ने 1930 में गांधीजी की दांडी यात्रा शुरू होने से पहले सरदार पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया। अगस्त 1930 में उन्हें दोबारा 3 महीने की जेल हुई। इसकी अवधि पूरी होने के बाद दिसंबर में उन्हें तीसरी बार गिरफ्तार किया गया और 9 महीने के लिए जेल भेज दिया गया। जनवरी 1932 से मई 1933 तक येरवडा जेल में अपने कारावास के दौरान उन्होंने अपना समय गांधीजी के साथ बिताया। 1934 में अस्वस्थता के कारण बिना शर्त उन्हें रिहा किया गया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाने पर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें फिर जेल भेज दिया। इसके बाद 20 अगस्त 1941 को उनकी रिहाई हुई। 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने पर सरदार पटेल को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और जून 1945 में रिहा किया गया।


जब पटेल हुए पक्षपात के शिकार 

1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में पटेल पार्टी के अध्‍यक्ष चुने गए। पहली बार वो 'गुजरात के सरदार' से 'देश के सरदार' बन गए। कहा जाता है कि महात्मा गांधी अगर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप न करते तो सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र पहली भारतीय सरकार के अंतरिम प्रधानमंत्री होते। कांग्रेस चाहती थी कि देश की कमान पटेल के हाथों में दी जाए क्योंकि वे जिन्ना से बेहतर नेतृत्त्व कर सकते थे, लेकिन गांधी ने नेहरू को चुना। दरअसल, देश को 15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता मिलनी थी, लेकिन उससे एक साल पहले अंतरिम सरकार बननी थी। तय हुआ कि कांग्रेस का अध्यक्ष प्रधानमंत्री बनेगा। परपंरा के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटिया करती थीं और 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था। बची हुई तीन कमेटियों ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था। किसी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने अध्यक्ष पद के लिए पंडित नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया था। तब गांधीजी ने अपनी जिद से नेहरू को अध्यक्ष बनवाया। आचार्य जेबी कृपलानी की किताब 'गांधी हिज लाइफ एंड थाटॅ्स' में इसका जिक्र है।


महात्मा गांधी ने दी लौह पुरुष की उपाधि

स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री बनाए गए। उन्होंने त्रावणकोर, हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर जैसी 550 से ज्यादा रियासतों को एकीकृत किया। सरदार पटेल की स्पष्टवादिता और निर्भीकता से प्रभावित होकर महात्मा गांधी जी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी। उन्होंने भारतीय संविधान सभा की मौलिक अधिकारों पर सलाहकार समिति और अल्पसंख्यकों, जनजातीय व बहिष्कृत क्षेत्रों पर समिति का नेतृत्त्व किया। उन्होंने शराब, छुआछूत, जातिगत भेदभाव और महिला मुक्ति के लिए अनेक काम किए। आधुनिक अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना करने के लिए उन्हें ‘भारतीय सिविल सेवकों के संरक्षक संत' के रूप में भी जाना जाता है।  

 सरदार पटेल को नहीं भूलेगा हिंदुस्तान


भारत माता के इस महान और विराट व्यक्तित्व के धनी सपूत को 15 दिसंबर 1950 को नियति के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया। सरदार वल्लभभाई पटेल को 1991 में भारत का सर्वोच्च भारत रत्न सम्मान दिया गया। राष्ट्रनिर्माण में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान की स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए उनकी 143वीं जयंती पर 31 अक्तूबर 2018 को विश्व की सबसे ऊंची 182 मीटर की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन किया गया। इसके साथ ही 2014 से राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जा रहा है। उनकी जयंती पर देशभर में रन फॉर यूनिटी का आयोजन होता, जो हमें भारत की एकता और अखंडता से जोड़ता है।


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