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लरंग सायः केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले पहले आदिवासी नेता

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रायपुरः लरंग साय प्रखर और तेजतर्रार राजनेता के रूप में याद किए जाते हैं। उनके सहज, सरल और स्पष्टवादी व्यक्तित्व के सभी कायल थे। अविभाजित सरगुजा के विकास पुरुष कहे जाने वाले लरंग साय की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके जीवन काल में ही लोगों ने रामानुजगंज में उनकी प्रतिमा लगा दी। एक सामान्य आदिवासी युवक का शिक्षक से केंद्रीय मंत्री बनने तक उनका सफर प्रेरणादायक है।  


शिक्षक से सांसद का सफर

लरंग साय का जन्म 28 अक्टूबर 1938 को सरगुजा के ग्राम पंचायत चिरई के जसवंतपुर गांव में हुआ था। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षक के रूप में जनसेवा शुरू की। इसके बाद शिक्षक की नौकरी छोड़कर 1967 में जनसंघ में शामिल हो गए। इसी साल उन्होंने सामरी विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा और जबरदस्त जीत दर्ज की। साल 1968 में उन्हें अविभाजित मध्यप्रदेश का राज्य मंत्री बनाया गया। राज्य मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने जनता के विकास के लिए अभूतपूर्व काम किए। उनकी कार्यकुशलता और लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में उन्हें सरगुजा लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। सरगुजा के लोगों ने एकतरफा वोटिंग की और लरंग साय रिकॉर्ड 66.7 प्रतिशत वोट से जीते। 


पहले आदिवासी केंद्रीय मंत्री 

मोरारजी देसाई की सरकार में उन्हें श्रम और संसदीय कार्य का राज्य मंत्री बना दिया गया। केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले वे पहले आदिवासी नेता थे। विधानसभा चुनाव 1980 में श्री लरंग साय एक बार फिर विधायक चुने गए। इसके बाद उन्हें आम चुनाव 1989 और 1998 में सरगुजा की जनता ने सांसद बनाकर दिल्ली भेजा। कहते हैं कि संसद में जब वे बेबाकी से बात उठाते तो उनकी मुखरता को सुन बड़े नेता भी दंग रह जाते थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी उन्हें अपना मित्र मानते थे। 


विकास की दूरदर्शी सोच

लरंग साय ने छत्तीसगढ़ और झारखंड को जोड़ने वाली कनहर नदी पर बड़ा पुल बनवाया। उन्हीं के प्रयास से अंबिकापुर तक रेल लाइन पहुंच पाई। इसके लिए उन्होंने लंबा आंदोलन चलाया था। कद्दावर मंत्री बनने के बावजूद वे हमेशा अपने गांव से जुड़े रहे। समय निकालकर अपने खेतों की जोताई करते और अंबिकापुर की सड़कों पर रिक्शे में बैठकर आम लोगों की तरह घूमते नजर आते थे। 7 जनवरी 2004 को लरंग साय का निधन होगा गया। उनके गुजरने के बाद अंबिकापुर शहर में उनके नाम से चौक का नामकरण किया गया और वहां उनकी प्रतिमा भी लगाई गई। लरंग साय की दूरदृष्टि और जनहितैषी नीतियों से सरगुजा के साथ पूरा छत्तीसगढ़ आज गौरवान्वित है।


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